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सोमवार, 22 सितंबर 2008

रात के तीसरे पहर एक स्त्री जूड़ा बांधती है

इस बार मिलिए रवींद्र व्‍यास से. हिंदी के युवा कहानीकार और चित्रकार रवींद्र की कविताओं की तरलता अलग-से ध्यान खींचती है। इंदौर में रहते हैं। इन दिनों ब्लॉगजगत में इनकी उपस्थिति की भी बड़ी चर्चा है।

रात के तीसरे पहर एक स्त्री जूड़ा बांधती है / रवींद्र व्‍यास

बिल्ली उसके अधूरे स्वप्न पर
दूध ढोल जाती है
चूहे उसकी नींद को कुतरने लगते हैं
मटके में भरा ताजा पानी रिसते रहता है
उनके तकिये पर छिपकली गिरती है
रात के तीसरे पहर में
एक स्त्री की नींद टूटती है
और वह हड़बड़ाकर बैठ जाती है
जिस दिवाल से वह
पीठ टिकाकर बैठती है
उस पर मकड़ी अपना जाला बुनती रहती है
रात के तीसरे पहर
वह स्त्री अपने खुले बालों को झटकती है
और जूड़ा बांध लेती है


गर्दन के नीचे हबा हाथ
यह इश्तहार ही हो सकता है
जो स्त्री का दु:ख
उसके सफेद होते बालों में देखता है
वह स्त्री अपनी शादी की तस्वीर के पीछे से
मकड़ी को सरकता देख सिहर जाती है
जिस आईने में देख वह बिंदी लगाती है
उसके पीछे से एक छिपकली निकलती है
और मकड़ी को चट कर जाती है
वह चौंकती नहीं
बस, अपने पास सोए आदमी को देखती है
जिसका हाथ उसकी छाती पर
जन्म-जन्मांतरों से पड़ा हुआ है
असंख्य तारे झिलमिलाते रहते हैं
और चंद्रमा सरकता रहता है
सुबह वह स्त्री
अपना दाहिना हाथ झटकती है
जो पति की गर्दन के नीचे दबा रह गया था

14 टिप्‍पणियां:

seema gupta ने कहा…

" have read first time this kind of poetry, a deep kind of a thought i found while reading, and can imagine the view while reading" Great work, appreciable'

Regards

PREETI BARTHWAL ने कहा…

बहुत खूब

anurag vats ने कहा…

bahut achhi kavitayen likhte hain...har baar ki trah aapka yah hunar bhi der se jana...shubhkamnayen...

ravindra vyas ने कहा…

आपके ब्लॉग पर अपनी कविताएं देखकर एकबारगी चौंका क्योंकि ये कविताएं सिर्फ गीत के पास थीं। मैं आपके प्रति आभारी हूं कि आपने इन कविताअों को जगह दी। सीमाजी और प्रीतिजी के प्रति भी गहरा आभार प्रकट करता हूं।

Arun Aditya ने कहा…

achchhi kavitayen. badhaai.

अमिताभ मीत ने कहा…

बहुत बढ़िया ... वाह !

पारुल "पुखराज" ने कहा…

hameshaa ki tarah...bahut badhiyaa!!!

Udan Tashtari ने कहा…

आनन्द आ गया रविन्द्र जी को पढ़कर..बहुत ही उम्दा कवितायें हैं. वाह!!

प्रदीप मिश्र ने कहा…

रविन्द्र की कविताएँ अच्छी हैं। उसका कलाकार शब्दों के रंगों को बहुत अच्छी तरह से पहचानता है। बधाई।

ravindra vyas ने कहा…

सचमुच, आप सभी के प्रति गहरा आभार।

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

बहुत ही गहरी संवेदनाएं इन कविताओं में रविन्‍द्र व्‍यास जी ने लिखी हैं पढकर लगा कि हां सचमुच कोई अच्‍छी कविता पढी हैं इनके लिए सबसे पहले तो मैं नवराही जी आपका आभार प्रकट करता हूं कि आपने इतनी अच्‍छी कविताओं को हमें पढाया फिर रविन्‍द्र व्‍यास जी का धन्‍यवाद कि उन्‍होंने इतनी अच्‍छी कविताओं की रचना की बहुत ही

बहुत ही सुंदर कविता बधाई हो आपको विशेषकर नवराही जी का जो इन कविताओं को हम तक लाने के माध्‍यम बने

युग-विमर्श ने कहा…

दोनों ही कवितायेँ पढ़ने के बाद कुछ हलकी-गहरी रेखाएं छोड़ जाती हैं. अर्थ खुलता रहता है-आहिस्ता-आहिस्ता.

N Navrahi/एन नवराही ने कहा…

टिप्‍पणी करने के लिए सभी मित्रों का बहुत बहुत धन्‍यवाद. ब्‍लॉग पर देरी से उपस्थित हो पाता हूं, इसके लिए क्षमा.
नव्‍यवेश

Gurinderjit Singh (Guri@Khalsa.com) ने कहा…

Kiya picture pesh kee hai aapne, incredible imagination jnab!