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शनिवार, 12 अप्रैल 2014

लाल सिंह दिल को याद करते हुए

लाल सिंह दिल
(11 अप्रैल 1943 से 14अगस्‍त 2007)

पंजाबी जुझारू कविता लहर के इंकलाबी कवि लाल सिंह दिल नक्‍सलबाड़ी लहर से प्रभावित पंजाबी कवियों पाश, संत राम उदासी, संत संधु और अमरजीत चंदन के साथ पंजाबी कविता में नई लीक मारने वाले कवियों में एक थे। दिल ने अपनी कविता के माध्‍यम से समाज के दबे कुचले वर्ग के लोगों का दर्द पेश किया। यह उनका अपना दर्द भी था। ज़ेहनी
तौर पर झेला मानसिक दर्द और दैहिक तौर पर झेला तशदद था, जिसकी टीस उसके रोज़मर्रा के जीवन से हूक बनकर निकलती रही। हम सभी ने उनके साथ हुई बेइंसाफी को महसूस तो किया लेकिन दूर-दूर से। समय गवाह है कि उसने बहत ही मुश्‍िकल समय गुज़ारा, लेकिन हम उसके दर्द में शरीक होने तब आए, जब उसे हमारे सहारे और हमदर्दी की ज़रूरत नहीं रही। आज जब वह नहीं रहा, तो हम उसे श्रद्धांजलि भेंट करने आए हैं। दरअसल हम अब मगरमच्‍छ के आंसू बहाकर एक तरह से अपना फर्ज़ पूरा करने आए हैं। हम जिंदा लोगों के दुख दर्द में शामिल होने के बजाए मढि़या पूजने के आदी बन चुके हैं। जो ज्‍यादतियां साहित्‍य में हो रही हैं, उन्‍हें बंगारने का हम में साहस नहीं है। (यह शब्‍द पंजाबी साहित्‍यकारा सुरजीत कलसी के हैं, जिन्‍होंने लाल सिंह दिल की कविताओं को अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था।) यहां प्रस्‍तुत है लाल सिंह दिल की कविताओं का हिन्‍दी अनुवाद
अंग्रेजी अनुवाद के लिए यहां क्लिक करें

वह साँवली औरत

जब कभी ख़ुशी में भरी कहती है--
"मैं बहुत हरामी हूँ !"
वह बहुत कुछ झोंक देती है
मेरी तरह
तारकोल के नीचे जलती आग में
तस्वीरें
क़िताबें
अपनी जुत्ती का पाँव
बन रही छत
और
ईंटें ईंटें ईंटें

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तुम्हारा युग

जब
बहुत सारे सूरज मर जायेंगे
तब
तुम्हारा युग आएगा
है न?
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काम के बाद

दिन भर की मेहनत के बाद
वे पल्लों से बाँध लेते हैं
अपने बच्चों की दिन भर की मेहनत की कीमत

दो रोटियों की वकालत करते हैं
ख़ुशामदी होते हैं
लौंडे की माँ का हाल बताते हैं
ठहाका लगाते हैं
और चुप्प हो जाते हैं
चले जाते हैं
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हमारे लिए




हमारे लिए
पेड़ों पर फल नहीं लगते
हमारे लिए
फूल नहीं खिलते
हमारे लिए
बहारें नहीं आतीं