सूफियों में वजीद मुझे बेहद पसंद हैं- अपनी बेबाकी और स्पष्टवादिता के कारण। यह सपष्टवादिता सर्वशक्तिमान को भी सीधा सवाल दागती है। वजीद ने किस काल में इस पृथ्वी पर विचरण किया, निश्चित रूप में कुछ नहीं कहा जा सकता। ज्यादातर विद्वान इस मत पर सहमत हैं कि उनका समय सोलहवीं-सतरहवीं शताब्दी के मध्य का समय था। उनकी रचना से मिलते कुछ हवालों से अनुमान लगाया जाता है कि सूफ़ी वेश धारण करने से पहले वह किसी श्रेष्ठ फ़ौजी पद पर कार्यरत थे। वजीद की ज्यादा रचना श्लोकों के रूप में है।
वजीद के श्लोक
मूरख नूं असवारी, हाथी घोड़ेयां
पंडित पैर प्यादे, पाटे जोड़ेयां
करदे सुघड़ मजूरी, मूरख दे जाए घर
वजीदा कौण साईं नो आखे, एयों नई अंझ कर।
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गउंआं देंदा घाह, मलीदा कुत्तेयां
जागदेयां थीं खोह के देंदा सुत्तेयां
चहूं कुंटी है पाणी, तालु, सर ब सर
वजीदा कौण साहिब नो आखै, एयों नई अंझ कर
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चोर जु करदे चोरी, लिआवण लुट घर।
खांदे दुध मलाई, मलीदे कुट कर।
रहंदे तेरी आस सु, जांदे भुख मरि।
वजीदा कौण साहिब नो आखै, एयों नई अंझ कर।
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इकना नूं घयो खंड, न मैदा भावई।
बहुती बहुती माया चल्ली आवई।
इकना नाही साग, अलूणा पेट भर।
वजीदा कौण साहिब नूं आखै, एयों नई अंझ कर।
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सूफ़ी कवि वजीद के बारे में बहुत सारे साथियों की टिप्पणियां प्राप्त हुईं। ज्यादातर दोस्तों ने वजीद के श्लोकों का हिंदी अनुवाद देने के लिए कहा है। में यहां इन श्लोकों की सरल-सी व्याख्या दे रहा हूं।
श्लोक 1 की व्याख्या
मूर्ख को हाथी-घोड़ों पर सवारी करने के मौके मिलते हैं। पंडित यानी समझदार लोगों को पैदल ही चलने पर मजबूर होना पड़ता है और फटे हुए कपड़ों में ही गुजर-बसर करना पड़ता है। इसी तरह सुघड़ यानी मंजे हुए या समझदार लोगों को मूर्खों के पास जाकर मजदूरी करनी पड़ती है, काम करना पड़ता है। वजीद कहते हैं कि उस साईं को, ख़ुदा को कौन कह सकता है कि वह ऐसा न करके वैसा करे।
श्लोक 2 की व्याख्या
गौओं को घस देता है और कुत्तों को मलीदा यानी चूरी खाने के लिए देता है। यही नहीं, जग रहों से छीनकर सोए हुए लोगों को दे देता है। उस साहिब को कौन कह सकता है कि वह ऐसा न करे।
श्लोक 3 की व्याख्या
वजीद इसमें कहते हैं कि चोर चोरियां करते हैं, लोगों को लूटते हैं, दूध मलाई और चूरियां खाते हैं यानी बुरे काम करने पर भी सबसे अच्छा जीवन व्यतीत करते हैं। लेकिन जो तुम्हारी यानी भगवान पर विश्वास रखते हैं, वे भूखे मरते हैं। वजीद कहते हैं कि ऐसा करने पर भी कौन उस साहिब को, उस परमात्मा को कह सकता है कि वह ऐसा न करे।
श्लोक 4 की व्याख्याइस श्लोक में वजीद कह रहे हैं, दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें खाने के लिए घी, शक्कर और मैदे से बनी अच्छी-अच्छी वस्तुएं मिलती हैं, लेकिन वह उन पर भी नाक-भौं सिकोड़ते हैं। परंतु दूसरी तरफ़ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें पेट भरने के लिए अन्न का एक दाना भी नसीब नहीं होता। ऐसे में भी उस साहिब को कौन कह सकता है कि वह ऐसा न करे।
वजीद के श्लोक
मूरख नूं असवारी, हाथी घोड़ेयां
पंडित पैर प्यादे, पाटे जोड़ेयां
करदे सुघड़ मजूरी, मूरख दे जाए घर
वजीदा कौण साईं नो आखे, एयों नई अंझ कर।
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गउंआं देंदा घाह, मलीदा कुत्तेयां
जागदेयां थीं खोह के देंदा सुत्तेयां
चहूं कुंटी है पाणी, तालु, सर ब सर
वजीदा कौण साहिब नो आखै, एयों नई अंझ कर
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चोर जु करदे चोरी, लिआवण लुट घर।
खांदे दुध मलाई, मलीदे कुट कर।
रहंदे तेरी आस सु, जांदे भुख मरि।
वजीदा कौण साहिब नो आखै, एयों नई अंझ कर।
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इकना नूं घयो खंड, न मैदा भावई।
बहुती बहुती माया चल्ली आवई।
इकना नाही साग, अलूणा पेट भर।
वजीदा कौण साहिब नूं आखै, एयों नई अंझ कर।
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सूफ़ी कवि वजीद के बारे में बहुत सारे साथियों की टिप्पणियां प्राप्त हुईं। ज्यादातर दोस्तों ने वजीद के श्लोकों का हिंदी अनुवाद देने के लिए कहा है। में यहां इन श्लोकों की सरल-सी व्याख्या दे रहा हूं।
श्लोक 1 की व्याख्या
मूर्ख को हाथी-घोड़ों पर सवारी करने के मौके मिलते हैं। पंडित यानी समझदार लोगों को पैदल ही चलने पर मजबूर होना पड़ता है और फटे हुए कपड़ों में ही गुजर-बसर करना पड़ता है। इसी तरह सुघड़ यानी मंजे हुए या समझदार लोगों को मूर्खों के पास जाकर मजदूरी करनी पड़ती है, काम करना पड़ता है। वजीद कहते हैं कि उस साईं को, ख़ुदा को कौन कह सकता है कि वह ऐसा न करके वैसा करे।
श्लोक 2 की व्याख्या
गौओं को घस देता है और कुत्तों को मलीदा यानी चूरी खाने के लिए देता है। यही नहीं, जग रहों से छीनकर सोए हुए लोगों को दे देता है। उस साहिब को कौन कह सकता है कि वह ऐसा न करे।
श्लोक 3 की व्याख्या
वजीद इसमें कहते हैं कि चोर चोरियां करते हैं, लोगों को लूटते हैं, दूध मलाई और चूरियां खाते हैं यानी बुरे काम करने पर भी सबसे अच्छा जीवन व्यतीत करते हैं। लेकिन जो तुम्हारी यानी भगवान पर विश्वास रखते हैं, वे भूखे मरते हैं। वजीद कहते हैं कि ऐसा करने पर भी कौन उस साहिब को, उस परमात्मा को कह सकता है कि वह ऐसा न करे।
श्लोक 4 की व्याख्याइस श्लोक में वजीद कह रहे हैं, दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें खाने के लिए घी, शक्कर और मैदे से बनी अच्छी-अच्छी वस्तुएं मिलती हैं, लेकिन वह उन पर भी नाक-भौं सिकोड़ते हैं। परंतु दूसरी तरफ़ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें पेट भरने के लिए अन्न का एक दाना भी नसीब नहीं होता। ऐसे में भी उस साहिब को कौन कह सकता है कि वह ऐसा न करे।