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मंगलवार, 19 अगस्त 2008

अव्‍वल आख सुना ख़ुदा ताईं...

कादरयार
पंजाब में 'किस्‍सों' की एक अलग परंपरा है. यह परंपरा साहित्‍य तक ही सीमित नहीं, पंजाबी समाज में भी इसकी जड़ें गहरी हैं. एक समय था, जब पंजाब में मनोरंजन का साधन यह किस्‍से ही हुआ करते थे. चौपालों में इकट्ठे होकर लंबी सद लगाकर इन किस्‍सों को गाया जाता था. मध्‍यकाल में इन किस्‍सों की रचना होती है. कई साहित्‍यकार किस्‍सों के रूप में प्रेम कहानियों को पेश करते रहे. यह प्रेम कहानियां इन किस्‍सों से पहले पंजाबी जन जीवन और जन मानस को प्रभावित कर चुकी थीं. 

'किस्‍सा' शब्‍द की उत्‍तपति अरबी भाषा के 'कस' शब्‍द से हुई है, जिसके अर्थ कथा, कहानी या गाथा ही हैं. किसी घटना या कहानी को एक विशेष तरीके से पेश करने को 'किस्‍सा' कहा जाता है. यह कहानी प्रेममय, ऐतिहासक, मिथिहासिक या रोमांचक कोई भी हो सकती है. किस्‍सा मूल रूप में काव्‍य रूप है. दुनिया में प्रसिि‍द्ध प्राप्‍त कर चुके किस्‍से 'हीर राझा की रचना दमोदर ने की थी. इस रचना को पहली प्रमाणिक किस्‍सा रचना होने का श्रेय है. इसके साथ ही पीलू, हाफिज बरखुरदार और अहमद आदि ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया.

कादरयार के बारे में
यहां जिस किस्‍साकार का तआरुफ आपसे कराया जा रहा है, वो है कादरयार.
कादरयार का जन्‍म गांव माछीके, जिला गुजरांवाला (पाकिस्‍तान) में हुआञ कादरयार जाति का संधू जट्ट था. उसकी जन्‍म तिथि के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं. परंतु उसकी जन्‍म तिथि का अंदाज़ा उसकी रचना 'महराजनामा' में दिए उसके बयान से लगाया जा सकता है. प्रिंसिपल संत सिंह सेखों के मुताबिक 'महराजनामा' की रचना 1832 ईस्‍वी में हुई. इस हिसाब से वह उनका जन्‍म 1805 ईस्‍वी के नज़दीक मानते हैं. मुसलमान होते हुए भी कारदयार को हिंदू मिथिहास, इतिहास के बारे में भरपूर जानकारी थी. उसने अपने मुरशद लाल शाह से शर्रा की शिक्षा हासिल की. कादरयार की क़ब्र उसके मुरशिद की क़ब्र के पास ही बनाई गई. बताते हैं कि यह क़ब्र अब भी मौजूद है. कादरयार ने 'सोहणी म‍हीवाल', जैसे किस्‍से के अलावा हिंदू मिथिहास पर आधारित किस्‍सा 'राजा रसालू' और 'पूरन भगत' की रचना भी की.
किस्‍सा पूरन भगत पंजाबी जनमानस में रचा बसा किस्‍सा है. इस किस्‍से में वर्णित जगहें वास्‍तव में मिलती हैं. सियालकोट में पूरन के नाम का कुंआ आज भी मौजूद है. यहां किस्‍सा 'पूरन भगत' से कुछ लाइनें आपसे सांझा कर रहा हूं—


अलिफ आख सखी सियालकोट अंदर, पूरन पुत सलवान ने जाया ई.
जदों जम्‍मया राने नूं ख़बर होई, सद पंडितां वेद पड़ाया ई.
बारां बरस ना राजेया मूंह लगीं, देख पंडितां एव फरमाया ई.
कादरयार मियां पूरन भगत ताईं, बाप जम्‍मदेयां ही भोरे पाया ई.

मंगलवार, 12 अगस्त 2008

महमूद दरवेश

फ़लीस्‍तीन के कवि महमूद दरवेश का पिछले दिनों निधन हो गया. वह 67 साल के थे. उनकी कविता फ़लीस्‍तीनी सपनों की आवाज़ है. वह पहले संग्रह 'बिना डैनों की चिडि़या' से ही काफ़ी लोकप्रिय हो गए थे. 1988 में यासिर अराफ़ात ने जो ऐतिहासिक 'आज़ादी का घोषणापत्र' पढ़ा था, वह भी दरवेश का ही लिखा हुआ था. उन्‍हें याद करते हुए कुछ कविताएं यहां दी जा रही हैं. इनका अनुवाद अनिल जनविजय ने किया है.

महमूद दरवेश
महमूद दरवेश


एक आदमी के बारे में

उन्होंने उसके मुँह पर जंज़ीरें कस दीं
मौत की चट्टान से बांध दिया उसे
और कहा- तुम हत्यारे हो

उन्होंने उससे भोजन, कपड़े और अण्डे छीन लिए
फेंक दिया उसे मृत्यु-कक्ष में
और कहा- चोर हो तुम

उसे हर जगह से भगाया उन्होंने
प्यारी छोटी लड़की को छीन लिया
और कहा- शरणार्थी हो तुम, शरणार्थी

अपनी जलती आँखों
और रक्तिम हाथों को बताओ
रात जाएगी
कोई क़ैद, कोई जंज़ीर नहीं रहेगी
नीरो मर गया था रोम नहीं
वह लड़ा था अपनी आँखों से

एक सूखी हुई गेहूँ की बाली के बीज़
भर देंगे खेतों को
करोड़ों-करोड़ हरी बालियों से


गुस्सा

काले हो गए
मेरे दिल के गुलाब
मेरे होठों से निकलीं
ज्वालाएँ वेगवती
क्या जंगल,क्या नर्क
क्या तुम आए हो
तुम सब भूखे शैतान!

हाथ मिलाए थे मैंने
भूख और निर्वासन से
मेरे हाथ क्रोधित हैं
क्रोधित है मेरा चेहरा
मेरी रगों में बहते ख़ून में गुस्सा है
मुझे कसम है अपने दुख की

मुझ से मत चाहो मरमराते गीत
फूल भी जंगली हो गए हैं
इस पराजित जंगल में

मुझे कहने हैं अपने थके हुए शब्द
मेरे पुराने घावों को आराम चाहिए
यही मेरी पीड़ा है

एक अंधा प्रहार रेत पर
और दूसरा बादलों पर
यही बहुत है कि अब मैं क्रोधित हूँ
लेकिन कल आएगी क्रान्ति

आशा

बहुत थोड़ा-सा शहद बाक़ी है
तुम्हारी तश्तरी में
मक्खियों को दूर रखो
और शहद को बचाओ

तुम्हारे घर में अब भी है एक दरवाज़ा
और एक चटाई
दरवाज़ा बन्द कर दो
अपने बच्चों से दूर रखो
ठंडी हवा

यह हवा बेहद ठंडी है
पर बच्चों का सोना ज़रूरी है
तुम्हारे पास शेष है अब भी
आग जलाने के लिए
कुछ लकड़ी
कहवा
और लपटॊं का एक गट्ठर


जाँच-पड़ताल

लिखो-
मैं एक अरब हूँ
कार्ड नम्बर- पचास हज़ार
आठ बच्चों का बाप हूँ
नौवाँ अगली गर्मियों में आएगा
क्या तुम नाराज़ हो?

लिखो-
एक अरब हूँ मैं
पत्थर तोड़ता है
अपने साथी मज़दूरों के साथ

हाँ, मैं तोड़ता हूँ पत्थर
अपने बच्चों को देने के लिए
एक टुकड़ा रोटी
और एक क़िताब

अपने आठ बच्चों के लिए
मैं तुमसे भीख नहीं मांगता
घिघियाता-रिरियाता नहीं तुम्हारे सामने
तुम नाराज़ हो क्या?

लिखो-
अरब हूँ मैं एक
उपाधि-रहित एक नाम
इस उन्मत्त विश्व में अटल हूँ

मेरी जड़ें गहरी हैं
युगों के पार
समय के पार तक
मैं धरती का पुत्र हूँ
विनीत किसानों में से एक

सरकंडे और मिट्टी के बने
झोंपड़े में रहते हूँ
बाल- काले हैं
आँखे- भूरी
मेरी अरबी पगड़ी
जिसमें हाथ डालकर खुजलाता हूँ
पसन्द करता हूँ
सिर पर लगाना चूल्लू भर तेल

इन सब बातों के ऊपर
कृपा करके यह भी लिखो-
मैं किसी से घृणा नहीं करता
लूटता नहीं किसी को
लेकिन जब भूखा होता हूँ मैं
खाना चाहता हूँ गोश्त अपने लुटेरों का
सावधान
सावधान मेरी भूख से
सावधान
मेरे क्रोध से सावधान