पंजाब में 'किस्सों' की एक अलग परंपरा है. यह परंपरा साहित्य तक ही सीमित नहीं, पंजाबी समाज में भी इसकी जड़ें गहरी हैं. एक समय था, जब पंजाब में मनोरंजन का साधन यह किस्से ही हुआ करते थे. चौपालों में इकट्ठे होकर लंबी सद लगाकर इन किस्सों को गाया जाता था. मध्यकाल में इन किस्सों की रचना होती है. कई साहित्यकार किस्सों के रूप में प्रेम कहानियों को पेश करते रहे. यह प्रेम कहानियां इन किस्सों से पहले पंजाबी जन जीवन और जन मानस को प्रभावित कर चुकी थीं.
'किस्सा' शब्द की उत्तपति अरबी भाषा के 'कस' शब्द से हुई है, जिसके अर्थ कथा, कहानी या गाथा ही हैं. किसी घटना या कहानी को एक विशेष तरीके से पेश करने को 'किस्सा' कहा जाता है. यह कहानी प्रेममय, ऐतिहासक, मिथिहासिक या रोमांचक कोई भी हो सकती है. किस्सा मूल रूप में काव्य रूप है. दुनिया में प्रसििद्ध प्राप्त कर चुके किस्से 'हीर राझा की रचना दमोदर ने की थी. इस रचना को पहली प्रमाणिक किस्सा रचना होने का श्रेय है. इसके साथ ही पीलू, हाफिज बरखुरदार और अहमद आदि ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया.
कादरयार के बारे में
यहां जिस किस्साकार का तआरुफ आपसे कराया जा रहा है, वो है कादरयार.
कादरयार का जन्म गांव माछीके, जिला गुजरांवाला (पाकिस्तान) में हुआञ कादरयार जाति का संधू जट्ट था. उसकी जन्म तिथि के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं. परंतु उसकी जन्म तिथि का अंदाज़ा उसकी रचना 'महराजनामा' में दिए उसके बयान से लगाया जा सकता है. प्रिंसिपल संत सिंह सेखों के मुताबिक 'महराजनामा' की रचना 1832 ईस्वी में हुई. इस हिसाब से वह उनका जन्म 1805 ईस्वी के नज़दीक मानते हैं. मुसलमान होते हुए भी कारदयार को हिंदू मिथिहास, इतिहास के बारे में भरपूर जानकारी थी. उसने अपने मुरशद लाल शाह से शर्रा की शिक्षा हासिल की. कादरयार की क़ब्र उसके मुरशिद की क़ब्र के पास ही बनाई गई. बताते हैं कि यह क़ब्र अब भी मौजूद है. कादरयार ने 'सोहणी महीवाल', जैसे किस्से के अलावा हिंदू मिथिहास पर आधारित किस्सा 'राजा रसालू' और 'पूरन भगत' की रचना भी की.
किस्सा पूरन भगत पंजाबी जनमानस में रचा बसा किस्सा है. इस किस्से में वर्णित जगहें वास्तव में मिलती हैं. सियालकोट में पूरन के नाम का कुंआ आज भी मौजूद है. यहां किस्सा 'पूरन भगत' से कुछ लाइनें आपसे सांझा कर रहा हूं—
कादरयार का जन्म गांव माछीके, जिला गुजरांवाला (पाकिस्तान) में हुआञ कादरयार जाति का संधू जट्ट था. उसकी जन्म तिथि के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं. परंतु उसकी जन्म तिथि का अंदाज़ा उसकी रचना 'महराजनामा' में दिए उसके बयान से लगाया जा सकता है. प्रिंसिपल संत सिंह सेखों के मुताबिक 'महराजनामा' की रचना 1832 ईस्वी में हुई. इस हिसाब से वह उनका जन्म 1805 ईस्वी के नज़दीक मानते हैं. मुसलमान होते हुए भी कारदयार को हिंदू मिथिहास, इतिहास के बारे में भरपूर जानकारी थी. उसने अपने मुरशद लाल शाह से शर्रा की शिक्षा हासिल की. कादरयार की क़ब्र उसके मुरशिद की क़ब्र के पास ही बनाई गई. बताते हैं कि यह क़ब्र अब भी मौजूद है. कादरयार ने 'सोहणी महीवाल', जैसे किस्से के अलावा हिंदू मिथिहास पर आधारित किस्सा 'राजा रसालू' और 'पूरन भगत' की रचना भी की.
किस्सा पूरन भगत पंजाबी जनमानस में रचा बसा किस्सा है. इस किस्से में वर्णित जगहें वास्तव में मिलती हैं. सियालकोट में पूरन के नाम का कुंआ आज भी मौजूद है. यहां किस्सा 'पूरन भगत' से कुछ लाइनें आपसे सांझा कर रहा हूं—
अलिफ आख सखी सियालकोट अंदर, पूरन पुत सलवान ने जाया ई.
जदों जम्मया राने नूं ख़बर होई, सद पंडितां वेद पड़ाया ई.
बारां बरस ना राजेया मूंह लगीं, देख पंडितां एव फरमाया ई.
कादरयार मियां पूरन भगत ताईं, बाप जम्मदेयां ही भोरे पाया ई.