महमूद दरवेश |
एक आदमी के बारे में
उन्होंने उसके मुँह पर जंज़ीरें कस दीं
मौत की चट्टान से बांध दिया उसे
और कहा- तुम हत्यारे हो
उन्होंने उससे भोजन, कपड़े और अण्डे छीन लिए
फेंक दिया उसे मृत्यु-कक्ष में
और कहा- चोर हो तुम
उसे हर जगह से भगाया उन्होंने
प्यारी छोटी लड़की को छीन लिया
और कहा- शरणार्थी हो तुम, शरणार्थी
अपनी जलती आँखों
और रक्तिम हाथों को बताओ
रात जाएगी
कोई क़ैद, कोई जंज़ीर नहीं रहेगी
नीरो मर गया था रोम नहीं
वह लड़ा था अपनी आँखों से
एक सूखी हुई गेहूँ की बाली के बीज़
भर देंगे खेतों को
करोड़ों-करोड़ हरी बालियों से
गुस्सा
काले हो गए
मेरे दिल के गुलाब
मेरे होठों से निकलीं
ज्वालाएँ वेगवती
क्या जंगल,क्या नर्क
क्या तुम आए हो
तुम सब भूखे शैतान!
हाथ मिलाए थे मैंने
भूख और निर्वासन से
मेरे हाथ क्रोधित हैं
क्रोधित है मेरा चेहरा
मेरी रगों में बहते ख़ून में गुस्सा है
मुझे कसम है अपने दुख की
मुझ से मत चाहो मरमराते गीत
फूल भी जंगली हो गए हैं
इस पराजित जंगल में
मुझे कहने हैं अपने थके हुए शब्द
मेरे पुराने घावों को आराम चाहिए
यही मेरी पीड़ा है
एक अंधा प्रहार रेत पर
और दूसरा बादलों पर
यही बहुत है कि अब मैं क्रोधित हूँ
लेकिन कल आएगी क्रान्ति
आशा
बहुत थोड़ा-सा शहद बाक़ी है
तुम्हारी तश्तरी में
मक्खियों को दूर रखो
और शहद को बचाओ
तुम्हारे घर में अब भी है एक दरवाज़ा
और एक चटाई
दरवाज़ा बन्द कर दो
अपने बच्चों से दूर रखो
ठंडी हवा
यह हवा बेहद ठंडी है
पर बच्चों का सोना ज़रूरी है
तुम्हारे पास शेष है अब भी
आग जलाने के लिए
कुछ लकड़ी
कहवा
और लपटॊं का एक गट्ठर
जाँच-पड़ताल
लिखो-
मैं एक अरब हूँ
कार्ड नम्बर- पचास हज़ार
आठ बच्चों का बाप हूँ
नौवाँ अगली गर्मियों में आएगा
क्या तुम नाराज़ हो?
लिखो-
एक अरब हूँ मैं
पत्थर तोड़ता है
अपने साथी मज़दूरों के साथ
हाँ, मैं तोड़ता हूँ पत्थर
अपने बच्चों को देने के लिए
एक टुकड़ा रोटी
और एक क़िताब
अपने आठ बच्चों के लिए
मैं तुमसे भीख नहीं मांगता
घिघियाता-रिरियाता नहीं तुम्हारे सामने
तुम नाराज़ हो क्या?
लिखो-
अरब हूँ मैं एक
उपाधि-रहित एक नाम
इस उन्मत्त विश्व में अटल हूँ
मेरी जड़ें गहरी हैं
युगों के पार
समय के पार तक
मैं धरती का पुत्र हूँ
विनीत किसानों में से एक
सरकंडे और मिट्टी के बने
झोंपड़े में रहते हूँ
बाल- काले हैं
आँखे- भूरी
मेरी अरबी पगड़ी
जिसमें हाथ डालकर खुजलाता हूँ
पसन्द करता हूँ
सिर पर लगाना चूल्लू भर तेल
इन सब बातों के ऊपर
कृपा करके यह भी लिखो-
मैं किसी से घृणा नहीं करता
लूटता नहीं किसी को
लेकिन जब भूखा होता हूँ मैं
खाना चाहता हूँ गोश्त अपने लुटेरों का
सावधान
सावधान मेरी भूख से
सावधान
मेरे क्रोध से सावधान
1 टिप्पणी:
अच्छी कविताएं हैं.
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