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रिश्तों के पिंजरे
वह मेरे जिस्म के इस पार झांकी
उस पार झांकी
और कहने लगी,
'तुम मेरे बाप जैसे भी नहीं
जो दारू की नदी तैर कर
डुबो देता है उदासी में घर सारा।
तुम मेरे पति जैसे भी नहीं
जो मेरी रूह तक पहुंचने से पहले ही
बदन में तैर कर
नींद में डूब जाता है।
तुम मेरे भाई जैसे भी नहीं
जो चाहता है
कि मैं बेरंग जीवन ही गुज़ारूं
मगर फिर भी
तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो।
मगर क्या नाम रखूं इस रिश्ते का
मैंने जो रिश्ते जिए, पिंजरे हैं
या कब्रें हैं
या खंडहर हैं।
हैंडल विद केयर
मेरे यहां आने से पहले
वह कॉलेज में थी।
अब भी उसके जिस्म और माज़ी की खुशबू
इस तरह लगता है जैसे
हर जगह मौजूद है।
जो कभी फूलों से, कमरे से
कभी माहौल से आती रहती है।
इस तरह लगता है कभी कैंटीन में
कॉफी की उठ रही भांप में
उसका चेहरा बन रहा है
और कभी लगता है पीरियड समाप्त करके
आ रही है वह उदासी।
और कभी लगता है कि बारिश में
खंबे के साथ लगी
वह किसी का इंतज़ार कर रही है
(किसका?)
मेरी जिंदगी में वह जब हुई दाखिल
मैंने कभी पूछा ही नहीं था।
न ही मेरा है स्वभाव
क्योंकि इस तरह के सवालों से
औरत तिड़क जाती है हमेशा।
पंजाबी से अनुवाद- नव्यवेश नवराही