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कृष्ण उस प्यार की समग्र परिभाषा है जिसमें मोह भी शामिल है, नेह भी शामिल है, स्नेह भी शामिल है और देह भी शामिल है। .कृष्ण का अर्थ है कर्षण यानी खींचना, यानी आकर्षण और मोह। सम्मोहन का मोहन भी तो कृष्ण है। वह प्रवृति से प्यार करता है। वह प्राकृत से प्यार करता है। गाय से, पहाड़ से, मोर से, नदियों के छोर से प्यार करता है। वह भौतिक चीज़ों से प्यार नहीं करता। वह जननी (देवकी ) को छो ड़ता है, ज़मीन छोड़ता है। ज़रूरत छोड़ता है, जागीर छोड़ता है , जिंदगी छोड़ता है, पर भावना के पटल पर अटलता देखें, वह मां यशोदा को नहीं छोड़ता। देवकी को विपत्ति में नहीं छोड़ता, सुदामा को गरीबी में नहीं छोड़ता, युद्ध में अर्जुन को नहीं छोड़ता। वह शर्तों के परे सत्य के साथ खड़ा हो जाता है टूटे रथ का पहिया उठाए आख़िरी और पहले हथियार की तरह।
उसके प्यार में मोह है, स्नेह है, संकल्प है, साधना है, आराधना है, उपासना है पर वासना नहीं है। वह अपनी प्रेमिका को आराध्य मानता है इसी लिए "राध्य" (अपभ्रंश में हम राधा कहते हैं ) कहकर पुकारता है। उसके प्यार में सत्य है सत्यभामा का, उसके प्यार में संगीत है, उसके प्यार में प्रीति है। उसके प्यार में देह दहलीज पर टिकी हुई वासना नहीं है।
2 टिप्पणियां:
prem kisi ke prati ek saral hriday ki saral bhaawnaa hai ....
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