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रविवार, 4 मई 2008

चार छोटी कविताएं/नव्‍यवेश नवराही

तुम हँसती
तुम हँसती-
फूल खिलते
उड़ान भरते हैं पंछी
सुगंधित हो जाती हवा
जब तुम हँसती

खिड़की
आप जिस खिड़की से देख रहे हैं
ज़रूरी नहीं
वो सही ही हो।
देख जाने वाले
उस दृश्य के कई पक्ष
हो गए होंगे औझल
आपकी आँख से।

प्रिय तुम...
प्रिय तुम उदास मत होना
कैसी भी हों राहें, मुश्किलें
अपनी यह निर्दोष मुस्कान
मत खोना
पतझड़ भी तो एक पड़ाव है
किसी अंजान
मंजिल की ओर बढ़ती
हसीन बहार का...
लेकिन तुम धैर्य मत खोना
प्रिय, तुम उदास मत होना।

'हैलो' मंत्र
मन में
जब भी गुस्से की बिजली कौंधती
खून में फैलता नफ़रत का ज़हर
फ़ोन पर
तुम्हारा एक ही शब्द-
'हैलो...'
मंत्र फूँकता
सब हलचलों को शांत कर देता

5 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

ये छोटी-छोटी कविताएं संकेत दे रही हैं कि आप में एक अच्छे कवि की संभावनाएं मौजूद हैं। बधाई !

सुभाष नीरव ने कहा…

ये छोटी-छोटी कविताएं संकेत दे रही हैं कि आप में एक अच्छे कवि की संभावनाएं मौजूद हैं। बधाई !

रंजू भाटिया ने कहा…

मन में
जब भी गुस्से की बिजली कौंधती
खून में फैलता नफ़रत का ज़हर
फ़ोन पर
तुम्हारा एक ही शब्द-
'हैलो...'
मंत्र फूँकता
सब हलचलों को शांत कर देता

वाह आप तो बहुत ही खूबसूरत लिखते हैं सरल लफ्जों में इतनी प्यारी बात कह दी ..बहुत खूब .यह बहुत पसंद आई मुझे

Jasvir Hussain ने कहा…

hanjji navrahi g...khadim ne jdon tuhadiyan kavitawan padiyqn tn mehsoos hoya k jiwen kisse ne:HELLO: kahi howe......ik bjli jehi kaundh gyi....likhde raho....

apni koi punjabi di nazm v deo apne blog ch

Unknown ने कहा…

navrhi g, apka blog zara hat k hai bahut acha laga. apki poetry to dil ko choo gai. haloo mantr to mano dil main ghar kar gai hai.
navrahi g main bhi hindi main blog banana aur ap ko tippni likhna chahti hun par pata nahi hindi main kaise blog banta hai. agar aap batan sakte ho to mail kar dijiyega (surbhee.verma0@gmail.com)kavita k liye ek baar phir badhai.