मित्र विमल कुमार की यह कविता मेरी पसंदीदा कविताओं में से है। कविता संग्रह 'ये मुखौटा किसका है' और 'सपने में एक औरत से बातचीत'' के जरिए काव्य जगत में शामिल हैं। पेशे से पत्रकार।
एक पुरुष कभी एक स्त्री को नहीं चूमता
क्योंकि उसके पास एक शरीर था
मेरी बांहों में झूलने से लेकर
आसमान तक उडऩे में
उसके पास वही शरीर था
वही केश-राशि, वही आंखें
पर वह इस यात्रा में कई बार बदल चुकी थी
जैसे आज तक न जाने कितनी बार
उसकी बिंदी बदली थी माथे पर
वह एक ही स्त्री थी
पर कई अर्थ देती थी मुझे
कई पंख देती थी
कई रंग, कई गंध
मैं भीएक ही पुरुष था
क्योंकि एक ही शरीर था मेरे पास
उसे चूमने से लेकर
उसे सताने तक एक ही शरीर
वही भुजाएं, वही जंघाएं
वही दर्प, वही तेज
पर इस यात्रा में मैं भी बदल चुका था कई बार
जैसे कई बार मैं अपना घर बदल चुका था
मैं भी कई अर्थ देता था उसे
कई ध्वनियां, कई फूल
कई पत्थर, कई पुल
वह एक ही स्त्री थी हर बार बदलती हुई
कई हज़ार स्त्रियों को अपने भीतर छुपाए हुए
मैं भी एक ही पुरुष था हर बार बदलता हुआ
अपने भीतर कई हज़ार पुरुषों को छिपाए
इसलिए जब वह मुझसे प्यार करती थी
कई हज़ार स्त्रियां मुझसे प्यार करती थीं
जब वह शिकायत करती थी
कई हज़ार स्त्रियां मुझसे शिकायत करती थीं
जब मैं उसे चूमता था
कई हज़ार पुरुष उसे चूमते थे
जब मैं उससे झगड़ता था
कई हज़ार पुरुष उससे झगड़ते थे
दरअसल एक स्त्री कभी एक पुरुष से प्यार नहीं करती
एक पुरुष भी कभी एक स्त्री को नहीं चूमता
अपने जीवन में
एक पुरुष कभी एक स्त्री को नहीं चूमता
Painting by: Mark Yale Harris |
क्योंकि उसके पास एक शरीर था
मेरी बांहों में झूलने से लेकर
आसमान तक उडऩे में
उसके पास वही शरीर था
वही केश-राशि, वही आंखें
पर वह इस यात्रा में कई बार बदल चुकी थी
जैसे आज तक न जाने कितनी बार
उसकी बिंदी बदली थी माथे पर
वह एक ही स्त्री थी
पर कई अर्थ देती थी मुझे
कई पंख देती थी
कई रंग, कई गंध
मैं भीएक ही पुरुष था
क्योंकि एक ही शरीर था मेरे पास
उसे चूमने से लेकर
उसे सताने तक एक ही शरीर
वही भुजाएं, वही जंघाएं
वही दर्प, वही तेज
पर इस यात्रा में मैं भी बदल चुका था कई बार
जैसे कई बार मैं अपना घर बदल चुका था
मैं भी कई अर्थ देता था उसे
कई ध्वनियां, कई फूल
कई पत्थर, कई पुल
वह एक ही स्त्री थी हर बार बदलती हुई
कई हज़ार स्त्रियों को अपने भीतर छुपाए हुए
मैं भी एक ही पुरुष था हर बार बदलता हुआ
अपने भीतर कई हज़ार पुरुषों को छिपाए
इसलिए जब वह मुझसे प्यार करती थी
कई हज़ार स्त्रियां मुझसे प्यार करती थीं
जब वह शिकायत करती थी
कई हज़ार स्त्रियां मुझसे शिकायत करती थीं
जब मैं उसे चूमता था
कई हज़ार पुरुष उसे चूमते थे
जब मैं उससे झगड़ता था
कई हज़ार पुरुष उससे झगड़ते थे
दरअसल एक स्त्री कभी एक पुरुष से प्यार नहीं करती
एक पुरुष भी कभी एक स्त्री को नहीं चूमता
अपने जीवन में
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3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर कविता !
वाह नवराही जी बहुत अच्छी रचना बधाई हो आपको यार नवराही जी आप थोडा रूक रूक कर मत आया करो बिना रूके नियमित आया करो ताकि हम आपको पढ सकें
वाकई बहुत अच्छी
बधाई हो आपको
अरे भाई
आप तो छुपे रुस्तम निकले
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