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रविवार, 23 नवंबर 2008

गर मुहब्बत ज़माने में है इक खता

श्रद़धा जैन की ग़ज़लें ही उनका परिचय है.
नव्‍यवेश


ग़ज़लें
आप भी अब मिरे गम बढ़ा दीजिए
मुझको लंबी उमर की दुआ दीजिए

मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए

रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब
कुछ नही तो मिरा दिल जला दीजिए

चाप कदमों की अपनी मैं पहचान लूं
आईने से यूँ मुझको मिला दीजिए

गर मुहब्बत ज़माने में है इक खता
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए

चाँद मेरे दुखों को न समझे कभी
चाँदनी आज उसकी बुझा दीजिए

हंसते हंसते जो इक पल में गुमसुम हुई
राज़ "श्रद्धा" नमी का बता दीजिए
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जब मिटा के शहर गया होगा
एक लम्हा ठहर गया होगा

है, वो हैवान ये माना लेकिन
उसकी जानिब भी डर गया होगा

तेरे कुचे से खाली हाथ लिए
वो मुसाफिर किधर गया होगा

ज़रा सी छाँव को वो जलता बदन
शाम होते ही घर गया होगा

नयी कलियाँ जो खिल रही फिर से
ज़ख़्म ए दिल कोई भर गया होगा

3 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छा लिखा है।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

दोनों बहुत बढिया गजलें हैं।बहुत अच्छा लिखा है।

मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए

रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब
कुछ नही तो मिरा दिल जला दीजिए

ghughutibasuti ने कहा…

बढ़िया !
घुघूती बासूती