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गुरुवार, 8 जनवरी 2009

मोहब्‍बत भरी दो नज्‍में

पंजाबी के वरिष्ठ कवि डॉ. जगतार जितना भारतीय पंजाब में प्रसिद्ध हैं, उससे कहीं ज़्यादा उन्हें पाकिस्तानी पंजाब में मान्यता दी जाती है। साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार प्राप्‍त डॉ. जगतार नज्‍म व ग़ज़ल लिखते हैं. उनकी प्रमुख पुस्‍तकों के नाम हैं- प्रवेश द्वार, चनुक्‍करी शाम, जजीरियां विच्‍च घिरिया समुंदर, अधूरा आदमी, लहू के नक्‍श,‍ दुध पत्‍थरी और तलखियां रंगीनियां. ये सभी पुस्‍तकें चेतना प्रकाशन, पंजाबी भवन, लुधियाना, पंजाब द्वारा प्रकाशित पंजाबी पुस्‍तक अणमुक सफर में शामिल हैं. पेश हैं उनकी दो नज्‍में
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रिश्तों के पिंजरे
वह मेरे जिस्म के इस पार झांकी
उस पार झांकी
और कहने लगी,
'तुम मेरे बाप जैसे भी नहीं
जो दारू की नदी तैर कर
डुबो देता है उदासी में घर सारा।
तुम मेरे पति जैसे भी नहीं
जो मेरी रूह तक पहुंचने से पहले ही
बदन में तैर कर
नींद में डूब जाता है।
तुम मेरे भाई जैसे भी नहीं
जो चाहता है
कि मैं बेरंग जीवन ही गुज़ारूं
मगर फिर भी
तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो।
मगर क्या नाम रखूं इस रिश्ते का
मैंने जो रिश्ते जिए, पिंजरे हैं
या कब्रें हैं
या खंडहर हैं।

हैंडल विद केयर
मेरे यहां आने से पहले
वह कॉलेज में थी।
अब भी उसके जिस्म और माज़ी की खुशबू
इस तरह लगता है जैसे
हर जगह मौजूद है।
जो कभी फूलों से, कमरे से
कभी माहौल से आती रहती है।
इस तरह लगता है कभी कैंटीन में
कॉफी की उठ रही भांप में
उसका चेहरा बन रहा है
और कभी लगता है पीरियड समाप्त करके
आ रही है वह उदासी।
और कभी लगता है कि बारिश में
खंबे के साथ लगी
वह किसी का इंतज़ार कर रही है
(किसका?)
मेरी जिंदगी में वह जब हुई दाखिल
मैंने कभी पूछा ही नहीं था।
न ही मेरा है स्वभाव
क्योंकि इस तरह के सवालों से
औरत तिड़क जाती है हमेशा।
पंजाबी से अनुवाद- नव्‍यवेश नवराही

6 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

बेहतरीन शायरी करते हैं मोहब्बत साहब


---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें

राज भाटिय़ा ने कहा…

दोनो नजमें एक से बड कर एक है जी, बहुत ही गहरे भाव लिये.
धन्यवाद

प्रशांत मलिक ने कहा…

'रिश्तों के पिंजरे' बहुत अच्छी लगी

सुशील छौक्कर ने कहा…

बहुत ही उम्दा। पढकर बहुत अच्छा लगा। पढवाने के लिए शुक्रिया आपका।

अजित वडनेरकर ने कहा…

उम्दा ब्लाग...उम्दा कविताएं...
देर से आया इस गली में...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मगर फिर भी
तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो।
मगर क्या नाम रखूं इस रिश्ते का
मैंने जो रिश्ते जिए, पिंजरे हैं
या कब्रें हैं
या खंडहर हैं।...

Waah...! bhot khooob...bhot sunder...dil ko chu gayi...!!