अशोक अजनबी पंजाबी और हिंदी में कविता लिखते हैं। पेशे से पत्रकार हैं। अपनी संयुक्त काव्य पुस्तक की तैयारी कर रहे हैं। प्रस्तुत है उनकी नई नज्म
मैं कल रोऊंगी
(गुमनाम अमरीकी अभिनेत्री लिलियन रॉथ के नाम)
बाल बिखेरे
हाथ फैलाए
मां का मैला आंचल पकड़े
वो लडक़ी बाज़ार गई है
यकीनन
वह लौटेगी
रोती
फफकती
सिसकती
और बिलखती
उसने मां से
बस चाहा था
मां उसको
टॉफी दिलवा दे
मां ने झिडक़ा
नहीं है पैसे
जहर खाने को
कैसे तुमको टॉफी दिलवाऊं?
कल आना साथ तू मेरे
तुमको टॉफी दिलवा हीं दूंगी
बच्ची रो दी
बहुत फफकी थी
बिलखी
और
बहुत सिसकी थी
कितनी बार यही कहा था
मां ने मुझको ऐसे ही टाला था
मन ही मन
कुछ सोच लिया
और चुपके से
मां के पीछे-पीछे चल दी।
आज नहीं
कल रोऊंगी।
मां कल भी
तो ऐसा
ही करेगी।
3 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी लगी आप की यह कविता
ਬਹੁਤ ਹੀ ਵਧੀਆ ਕਵਿਤਾ....
ਛੋਟੀ ਬੱਚੀ ਦੀ ਦਿਲੀ ਤਮੰਨਾ ਦਿਲ 'ਚ ਇੱਕ ਚੀਸ ਬਣ ਕੇ ਰਹਿ ਜਾਣੀ ਸੀ ਜੇ ਓਹ ਰੋ-ਰੋ ਕੇ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਨੂੰ ਏਸ ਦਾ ਇਜਹਾਰ ਨਾ ਕਰਦੀ ਤਾਂ.....ਇੱਛਾ ਤਾਂ ਪੂਰੀ ਨਹੀਂ ਹੋਈ ਪਰ ਦਿਲ 'ਤੇ ਵੱਡਿਆਂ ਵਾਂਗ ਬੋਝ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ....ਆਵਦੀ ਭੜਾਸ ਮਾਂ ਕੋਲ਼ ਰੋ-ਰੋ ਕੇ ਕੱਢ ਦਿੱਤੀ।
pahali baar is blog ko dekh raha hoo. sundar vicharon se bhare is ''baag'' ko dekh dil baag-baag ho gaya..
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