मेरे प्रेम
हर युग में
मैं तुम्हें प्यार करता रहा हूं
रूप कई बनाए होंगे विधाता ने तुम्हारे
कई वेशों में
मैं भी दोहराया गया हूं
बहारों से पूछता कभी पता तुम्हारा
हर मौसम को सजदे करता रहा हूं
िवश्वास था मिलेंगे
कभी किसी जन्म में
वक्त का हर दर्द सहता रहा हूं
इस जन्म की बात नहीं
मेरे प्रेम—
हर युग में
मैं तुम्हें प्यार करता रहा हूं। (महिंदरजीत)
अनुवाद: एन नवराही