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रविवार, 11 अक्तूबर 2020

हकीम सनाई: एक बात ने बदल दी जीवनधारा

जीवन में कोई एक घटना किसी की जीवनधारा को कैसे बदल देती है, सूफियों के जीवन से इस बात को सही से समझा जा सकता है। लगभग हर सूफी के जीवन में ऐसी घटना का जिक्र आता है, जिसके बाद उसका जीवन पूरी तरह से बदल जाता है। ऐसी ही एक घटना सूफी हकीम सनाई के जीवन में भी है। 


हकीम सनाई के जीवन के बारे में जयादा जानकारी नहीं मिलती। उनका यह फानी दुनिया छोड़ने का सन् 1150 बताया जाता है। वे गजाना के रहने वाले थे। उस समय गजाना पर बादशाह इब्राहिम का राज था। 

एक छोटी सी घटना ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। बताया जाता है, हकीम सनाई अपने समय के मशहूर शायर थे। उन्होंने बादशाह इब्राहिम की तारीफ में कविता लिखी और उसे सुनाने के लिए भी चल पड़े। बादशाह उस समय हिंदुस्तान पर हमला करने की जुगत में था। हिंदुस्तान की तरफ जाते हुए रास्ते में एक खुशबूदार हदीका (बगीचा) था, जहां से किसी के गाने की आवाज आ रही थी। यह आवाज लाई-खुर की थी। वह शराबी था और लोग उसे पागल समझते थे। वो गा रहा था- 'शराब लाओ और पिओ, एक जाम अंधे सुलतान के नाम'। लोगों ने कहा- यह क्या कह रहे हो? वह खिलखिलाकर हंसा और बोला- 'अंधा नहीं तो और क्या है? जिस समय उसकी जरूरत अपने वतन में है, उस समय वे दूसरे मुल्कों पर हमला करने के लिए पागल हो रहा है।' अपनी बात पूरी करके वो मस्त होकर फिर गाने लगा- 'दूसरा जाम हकीम सनाई के अंधेपन के नाम...' 

हकीम सनाई उस समय बड़े शायर का रुतबा हासिल कर चुके थे। लोगों ने ऐतराज जताया तो लाई-खुर बोला- 'यह तो और भी सही बात है। हकीम सनाई को इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं कि वो किस काम के लिए पैदा हुआ है। जब खुदा के सामने पेशी होगी, तो दिखाने के लिए उसके पास कुछ नहीं होगा, सिवाए सुलतान की प्रशंसा में लिखे झूठे गीतों के।' 

यह बात जब हकीम सनाई को पता चली, तो वह हिल गए। पहली बार वे जीवन की हकीकत के रूबरू हुए। तभी वे सबकुछ छोड़कर सूफी मुर्शिद यूसफ़ हमदानी की शरण में गए। कई साल उनके साथ रहने के बाद वे मक्का गए और लौटने के बाद 'हदीकत' की रचना करने लगे। सन 1130 में यह रचना मुकम्मल हुई- जिसका नाम था- हदीकत-उल-हकीकत। इसके बारे में उन्होंने स्वयं लिखा है- जब तक इंसान के पास जबान है, यह पढ़ी जाती रहेगी। फारसी (पर्शियन) में लिखे गए इस ग्रंथ में 12 हजार दोहे हैं। यह एक गैर-साधारण रचना है। इसे समझने के लिए इसमें डूबना पड़ता है। इस रचना ने हकीम सनाई को सूफी गुरु जलालुद्दीन रूमी और अत्तार की कतार में खड़ा कर दिया।

अंग्रेजी में इसके कुछ हिस्से का अनुवाद डीएल पैंडलबरी ने 'द वर्ल्ड ऑफ ट्रुथ' नाम से किया है। इस संपूर्ण ग्रंथ का अनुवाद मेजर स्टीफन सन ने किया था। 

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

अमर प्रेम

मेरे प्रेम
इस उम्र की बात नहीं
Painting by: Sreenivasula Reddy
हर युग में
मैं तुम्हें प्यार करता रहा हूं
रूप कई बनाए होंगे विधाता ने तुम्हारे
कई वेशों में
मैं भी दोहराया गया हूं
बहारों से पूछता कभी पता तुम्हारा
हर मौसम को सजदे करता रहा हूं
िवश्वास था मिलेंगे
कभी किसी जन्म में
वक्त का हर दर्द सहता रहा हूं
इस जन्म की बात नहीं
मेरे प्रेम— 
हर युग में
मैं तुम्हें प्यार करता रहा हूं।  (महिंदरजीत)


अनुवाद: एन नवराही

शुक्रवार, 18 मई 2018

ऑक्टेवियो पॉज़: मेरे हाथ तुम्हारे अस्तित्व के पर्दे खोलते हैं...


ऑक्टेवियो पॉज़ का जन्म 1914 में मैक्सीको शहर में हआ। पिता मैक्सीकन और मां स्पेनिश। बचपन के दिन वे इस तरह याद करते हैं- 'हमारा घर बड़ा था, पर उसकी दीवारें भुरभुराती थीं। जब एक कमरा गिर जाता, तो हम सभी चीजें दूसरे कमरे में ले जाते।

उन्नीस साल की उम्र में पॉज ने कविता की पहली किताब छपवाई। 1937 मे वह फाशी विरोधी कान्फ्रेंस में हिस्सा लेने स्पेन गए, जहां विश्व के तरक्कीपसंद कवियों से उसकी मुलाकात हुई।

पॉज़ अपने जीवन में दर्जनों मैग्जींस के एडीटर रहे, अनुवाद किया और कविता की चालीस से ज्यादा किताबों का सर्जन किया। वे ज़हीन फिलॉसफर थे, जिन्होंने सार्त्र के विचारों को भी चैलेंज किया।
वे अपने देश के राजदूत भी रहे और पैरिस, जनीवा, न्यूयॉर्क, सानफ्रांसिस्को और दिल्ली में भी रहे। 1968 में वो दिल्ली में ही थे, जब मैक्सीको में छात्रों के कत्लों के कारण उन्होंने इस्तीफा दिया। भारत में रहते हुए भी उन्होंने बहुत सारी कविताएं लिखीं। 1990 में उन्हें नॉबेल से नवाजा गया।

अपनी पहली कविताओं में वे मार्क्सवादी थे, किंतु अंतिम कविताओं में वे अंतर्मुखी हो चुके थे। उसके विचार थे- 'कविता हमें अति सूक्षम, अछूह तथा अगोचर के निकट लाती है और चुप की लहरों को सुनने के काबिल बनाती है, जिन्होंने धरती का दृश्य उन्नीदें से ढंककर बर्बाद किया हुआ है।

ऑक्टेवियो पॉज़ की कुछ कविताएं

छुअन

मेरे हाथ तुम्हारे अस्तित्व के पर्दे खोलते हैं
तुम्हें होने वाले नंगेज के वस्त्र पहनाने के लिए।
मेरे हाथ, तुम्हारे जिस्मों से जिस्म उधेड़ते हैं,
तुम्हारे जिस्म से एक और जिस्म ढूंढ़ने के लिए।

***

Painting: Edvard MunchGirls on the Bridge, 1899

पुल

अब और अब के बीच
मेरे और तुम्हारे दरम्यान
एक शब्द है 'पुल'
इसके भीतर जाकर
तुम अपने भीतर जाती हो 
कायनात इसे जोड़ती
और अंगूठी की तरह बंद कर देती है।
एक किनारे से दूसरे किनारे
हमेशा एक जिस्म तना रहता है
सतरंगी पींग की तरह
और मैं इस पुल की महराबों के तले सो जाऊंगा।
***

किसी के बिना

वृक्षों के बीच
कोई भी नहीं
और मुझे पता नहीं
मैं कहां चला गया हूं।

                                  - अनुवाद: एन नवराही

***

रविवार, 13 मई 2018

कालिप्सो, रूसी कवि पुश्किन की प्रेमिका...


प्रेमिकाएं /आंखों में नहीं /दिल में छुपाकर रखती हैं स्वप्न...

ग्रीक सुंदरी कालिप्सो के बारे मे ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। यह ग्रीक नवयौवना रूसी शायर पुश्किन को अथाह प्रेम करती थी। रोमानिया के एक इलाके में ग्रीक रहते थे, जहां 1832 में तुर्की हाकिमों के खिलाफ बगावत हुई थी और कालिप्सो बग़ावतियों के साथ मिलकर लड़ी थी। पर जब बग़ावती लोगों को रूस के दक्षिण में पनाह लेनी पड़ी, तो वहां कालप्सो की पुश्किन से मुलाकात हुई थी।


वहां पुश्किन के प्रेम में जब इस ग्रीक सुंदरी का दिल टूट गया, तो वह रोमानिया लौट आई, पर दुनिया से वैरागी हो चुकी कालिप्सो की दुनिया में कोई दिलचस्पी नहीं थी। निराशा ने उसे तन और मन से त्यागी बना दिया था।
उन दिनों गिरजाघरों में औरत का प्रवेश वर्जित था, इसलिए कालिप्सो ने पुरुष के वेश में गिरजाघर में पनाह ले ली। कई साल वे गिरजे में फकीरी वेश में रही, केवल 1940 में उसकी मौत के बाद पता चला कि वो औरत थी... अमृता प्रीतम ने अपनी एक किताब में इसका जिक्र किया है।

रविवार, 3 सितंबर 2017

अच्‍छी औरत की तलाश...


मुल्‍ला नसरुद्दीन का किस्‍सा

एक दिन मुल्ला और उसका एक दोस्त कहवाघर में बैठे चाय पी रहे थे और दुनिया और इश्क के बारे में बातें कर रहे थे. दोस्त ने मुल्ला से पूछा – “मुल्ला! तुम्हारी शादी कैसे हुई?”
मुल्ला ने कहा – “यार, मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूँगा. मैंने अपनी जवानी सबसे अच्छी औरत की खोज में बिता दी. काहिरा में मैं एक खूबसूरत, और अक्लमंद औरत से मिला जिसकी आँखें जैतून की तरह गहरी थीं लेकिन वह नेकदिल नहीं थी. फिर बग़दाद में भी मैं एक औरत से मिला जो बहुत खुशदिल और सलीकेदार थी लेकिन हम दोनों के शौक बहुत जुदा थे. एक के बाद दूसरी, ऐसी कई औरतों से मैं मिला लेकिन हर किसी में कोई न कोई कमी पाता था. और फिर एक दिन मुझे वह मिली जिसकी मुझे तलाश थी. वह सुन्दर थी, अक्लमंद थी, नेकदिल थी और सलीकेदार भी थी. हम दोनों में बहुत कुछ मिलता था. मैं तो कहूँगा कि वह पूरी कायनात में मेरे लिए ही बनी थी…” दोस्त ने मुल्ला को टोकते हुए कहा – “अच्छा! फिर क्या हुआ!? तुमने उससे शादी कर ली!”
मुल्ला ने ख्यालों में खोए हुए चाय की एक चुस्की ली और कहा – “नहीं दोस्त! वो तो दुनिया के सबसे अच्छे आदमी की तलाश में थी.”

ओ! ऐसा है क्या?

ज़ेन मास्टर हाकुइन जिस गाँव में रहता था वहां के लोग उसके महान गुणों के कारण उसको देवता की तरह पूजते थे।
उसकी कुटिया के पास एक परिवार रहता था जिसमें एक सुंदर युवा लड़की भी थी। एक दिन उस लड़की के माता-पिता को इस बात का पता चला कि उनकी अविवाहित पुत्री गर्भवती थी।
लड़की के माता-पिता बहुत क्रोधित हुए और उनहोंने होने वाले बच्चे के पिता का नाम पूछा। लड़की अपने प्रेमी का नाम नहीं बताना चाहती थी पर बहुत दबाव में आने पर उसने हाकुइन का नाम बता दिया।
लड़की के माता-पिता आगबबूला होकर हाकुइन के पास गए और उसे गालियाँ बकते हुए सारा किस्सा सुनाया। सब कुछ सुनकर हाकुइन ने बस इतना - ही कहा – ”ओ... ऐसा है क्या?”
पूरे गांव में हाकुइन की थू-थू होने लगी। बच्चे के जन्म के बाद लोग उसे हाकुइन की कुटिया के सामने छोड़ गए। हाकुइन ने लोगों की बातों की कुछ परवाह न की और वह बच्चे की बहुत अच्छे से देखभाल करने लगा। वह अपने खाने की चिंता नहीं करता था पर बच्चे के लिए कहीं-न-कहीं से दूध जुटा लेता था।
लड़की यह सब देखती रहती थी। साल बीत गया। एक दिन बच्चे का रोना सुनकर माँ का दिल भर आया। उसने गाँव वालों और अपने माता-पिता को सब कुछ सच-सच बता दिया। लड़की के पिता के खेत में काम करने वाला एक मजदूर वास्तव में बच्चे का पिता था।
लड़की के माता-पिता और दूसरे लोग लज्जित होकर हाकुइन के पास गए और उससे अपने बुरे बर्ताव के लिए क्षमा माँगी। लड़की ने हाकुइन से अपने बच्चा वापस माँगा।
हाकुइन ने मुस्कुराते हुए बस इतना कहा – ”ओ... ऐसा है क्या?”


गुरुवार, 25 मई 2017

मंटो का एक किस्सा...

मंटो अपनी बेटियों के साथ
मंटो एक ही था। दूसरा मंटो नहीं हो सकता। मंटो जैसे जीवंत बंदे का एक किस्सा आपकी नजर... 

मंटो के पास टाइपराइटर था और मंटो अपने तमाम ड्रामे इसी तरह लिखता था कि काग़ज़ को टाइपराइटर पर चढ़ा कर बैठ जाता था और टाइप करना शुरू कर देता था। मंटो का ख्याल है कि टाइपराइटर से बढ़कर प्रेरणा देने वाली दूसरी कोई मशीन दुनिया में नहीं है। शब्द गढ़े-ग़ढाये मोतियों की आब लिए हुए, साफ़-सुथरे मशीन से निकल जाते हैं। क़लम की तरह नहीं कि निब घिसी हुई है तो रोशनाई कम है या काग़ज़ इतना पतला है कि स्याही उसके आर-पार हो जाती है या खुरदरा है और स्याही फैल जाती है। एक लेखक के लिए टाइपराइटर उतना ही ज़रूरी है जितना पति के लिए पत्नी। और एक उपेन्द्र नाथ अश्क और किशन चन्दर है कि क़लम घिस-घिस किए जा रहे है। " अरे मियां, कहीं अज़ीम अंदब की तखलीक़ (महान साहित्य का सृजन) आठ आने के होल्डर से भी हो सकता है। तुम गधे हो, निरे गधे।" मैं तो ख़ैर चुप रहा, पर दो-तीन दिन के बाद हम लोग क्या देखते हैं कि अश्क साहब अपने बग़ल में उर्दू का टाइपराइटर दबाये चले आ रहे है और अपने मंटो की मेज़ के सामने अपना टाइपराइटर सजा दिया और खट-खट करने लगे। "अरे, उर्दू के टाइपराइटर से क्या होता है? अंग्रेजी टाइपराइटर भी होना चाहिए। किशन, तुमने मेरा अंग्रेज़ी का टाइपराइटर देखा है? दिल्ली भर में ऐसा टाइपराइटर कहीं न होगा। एक दिन लाकर तुम्हें दिखाऊंगा।" अशक ने इस पर न केवल अँग्रेजी का, बल्कि हिन्दी का टाइपराइटर भी ख़रीद लिया। अब जब अश्‍क आता तो अकसर चपरासी एक छोड़ तीन टाइपराइटर उठाये उसके पीछे दाखिल होता और अश्क मंटो के सामने से गुज़र जाता, क्योंकि मंटो के पास सिर्फ दो टाइपराइटर थे। आख़िर मंटो ने ग़ुस्से में आकर अपना अंग्रेजी टाइपराइटर भी बेच दिया और फिर उर्दू टाइपराइटर को भी वह नहीं रखना चाहता था, पर उससे काम में थोड़ी आसानी हो जाती थी, इसलिए उसे पहले पहल नहीं बेचा - पर तीन टाइपराइटर की मार वह कब तक खाता। आख़िर उसने उर्दू का टाइपराइटर भी बेच दिया। कहने लगा, "लाख कहो, वह बात मशीन में नहीं आ सकती जो क़लम में है। काग़ज़, क़लम और दिमाग में जो रिश्ता है वह टाइपराइटर से क़ायम नहीं होता। एक तो कमबख़्त खटाख़ट शोर किए जाता है- मुसलसल, मुतवातिर- और क़लम किस रवानी से चलता है। मालूम होता है रोशनाई सीधी दिमाग़ से निकल कर काग़ज की सतह पर बह रही है। हाय, यह शेफ़र्स का क़लम किस क़दर ख़ूबसूरत है। इस नुकीला स्ट्रीमलाइन हुस्न देखो, जैसे बान्द्रा की क्रिशिचयन छोकरी।" और अश्क ने जल कर कहा, "तुम्हारा भी कोई दीन-ईमान है। कल तक टाइपराइटर की तारीफ़ करते थे। आज अपने पास टाइपराइटर है तो क़लम की तारीफ़ करने लगे। वाह। यह भी कोई बात है। हमारे एक हजार रुपये ख़र्च हो गए।"
मंटो ज़ोर से हंसने लगा। 

सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

बस एक लम्हे का झगड़ा था

बस एक लम्हे का झगड़ा था
दर-ओ-दीवार पे ऐसे छनाके से गिरी आवाज़
जैसे काँच गिरता है
हर एक शय में गई
उड़ती हुई, चलती हुई, किरचें
नज़र में, बात में, लहजे में,
सोच और साँस के अन्दर
लहू होना था इक रिश्ते का
सो वो हो गया उस दिन
उसी आवाज़ के टुकड़े उठा के फर्श से उस शब
किसी ने काट ली नब्जें
न की आवाज़ तक कुछ भी
कि कोई जाग न जाए
बस एक लम्हे का झगड़ा था
                             -गुलज़ार

Painting : Anna Bocek
Polish artist Anna Bocek's figurative paintings feature vibrant and energetic portraits of women.

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

लाल सिंह दिल को याद करते हुए

लाल सिंह दिल
(11 अप्रैल 1943 से 14अगस्‍त 2007)

पंजाबी जुझारू कविता लहर के इंकलाबी कवि लाल सिंह दिल नक्‍सलबाड़ी लहर से प्रभावित पंजाबी कवियों पाश, संत राम उदासी, संत संधु और अमरजीत चंदन के साथ पंजाबी कविता में नई लीक मारने वाले कवियों में एक थे। दिल ने अपनी कविता के माध्‍यम से समाज के दबे कुचले वर्ग के लोगों का दर्द पेश किया। यह उनका अपना दर्द भी था। ज़ेहनी
तौर पर झेला मानसिक दर्द और दैहिक तौर पर झेला तशदद था, जिसकी टीस उसके रोज़मर्रा के जीवन से हूक बनकर निकलती रही। हम सभी ने उनके साथ हुई बेइंसाफी को महसूस तो किया लेकिन दूर-दूर से। समय गवाह है कि उसने बहत ही मुश्‍िकल समय गुज़ारा, लेकिन हम उसके दर्द में शरीक होने तब आए, जब उसे हमारे सहारे और हमदर्दी की ज़रूरत नहीं रही। आज जब वह नहीं रहा, तो हम उसे श्रद्धांजलि भेंट करने आए हैं। दरअसल हम अब मगरमच्‍छ के आंसू बहाकर एक तरह से अपना फर्ज़ पूरा करने आए हैं। हम जिंदा लोगों के दुख दर्द में शामिल होने के बजाए मढि़या पूजने के आदी बन चुके हैं। जो ज्‍यादतियां साहित्‍य में हो रही हैं, उन्‍हें बंगारने का हम में साहस नहीं है। (यह शब्‍द पंजाबी साहित्‍यकारा सुरजीत कलसी के हैं, जिन्‍होंने लाल सिंह दिल की कविताओं को अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था।) यहां प्रस्‍तुत है लाल सिंह दिल की कविताओं का हिन्‍दी अनुवाद
अंग्रेजी अनुवाद के लिए यहां क्लिक करें

वह साँवली औरत

जब कभी ख़ुशी में भरी कहती है--
"मैं बहुत हरामी हूँ !"
वह बहुत कुछ झोंक देती है
मेरी तरह
तारकोल के नीचे जलती आग में
तस्वीरें
क़िताबें
अपनी जुत्ती का पाँव
बन रही छत
और
ईंटें ईंटें ईंटें

---

तुम्हारा युग

जब
बहुत सारे सूरज मर जायेंगे
तब
तुम्हारा युग आएगा
है न?
----
 

काम के बाद

दिन भर की मेहनत के बाद
वे पल्लों से बाँध लेते हैं
अपने बच्चों की दिन भर की मेहनत की कीमत

दो रोटियों की वकालत करते हैं
ख़ुशामदी होते हैं
लौंडे की माँ का हाल बताते हैं
ठहाका लगाते हैं
और चुप्प हो जाते हैं
चले जाते हैं
---

हमारे लिए




हमारे लिए
पेड़ों पर फल नहीं लगते
हमारे लिए
फूल नहीं खिलते
हमारे लिए
बहारें नहीं आतीं

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

जिंदुआ ते रस बिंदुआ...

पंजाबी में 'जुगनी' की तरह 'जिंदुआ' भी एक लोक काव्‍य रूप है। जुगनी तो हिन्‍दी फिल्‍मों में आ चुकी है। 'ओए लक्‍की लक्‍की ओए' में भी उसका एक रूप है। हालांकि इसके कई रूप मिलते हैं। जुगनी की ही तरह जिंदुआ के भी कई रूप मिलते हैं। इसमें प्रेमी और प्रेमिका का मीठा संवाद होता है, जिसमें प्रयसी अपने प्रेमी के साथ ही रहने की अभिलाषा व्‍यक्‍त करती है। इसके बारे में पूरा आलेख फिर कभी। अब हंस राज हंस की आवाज़ में यह जिंदुआ सुनिए...
मज़ा सुनकर ही आएगा, पढ़ नहीं... शब्‍दों से सुर-ताल का मेल जरूरी है।
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जिंदुआ ते रस बिंदुआ (2)
दोवें सके भरा
जिंदुए संग जिंद मेरीए लै लैण मिला (2)
होगी ला ला, सारे घर विच्‍च, सारे दर विच्‍च, घर-घर विच्‍च।
............. हो वे जेहड़ी दिलां नूं लाई आ (2)
---
चल जिंदुआ वे चल चल्‍लीए बज़ारीं जित्‍थे ने विकदे रुमाल
हाड़ा वे जिंदुआ बुरे विछोड़े लै चल अपने नाल (2)
वे चल चंडीगढ़, चल दिल्‍ली शहर..(2).
............. हो वे जेहड़ी दिलां नूं लाई आ (2)
---
चल जिंदुआ वे चल चल्‍लीए पहाड़ी, जित्‍थे ने विकदे अनार (2)
तूं तोड़ी मैं वेचण वाली, इक रुपइए चार
वे गोरे रंग दी मैं, लाली रंग दी मैं (2)
रब्‍ब तो रंगवाई आ ओ जिंदुआ
............. हो वे जेहड़ी दिलां नूं लाई आ (2)

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इक जिंदुआ वे तेरे नैण बिल्‍लौरी, विच्‍च सुरमे दी धारी
सुरमे वाले नैणा ने मेरे दिल ते बरछी मारी (2)
वे कुझ कह गया, जिंद लै गया (2)
वे जिंद मार मुकाई आ, ओ जिंदुआ
वे जेहड़ी दिलां नूं लाई आ हाड़ा वे जेहड़ी दिलां नूं लाई आ...
---

चल जिंदुआ वे चल मेले चल्‍लीए चल्‍लीए शौकीनी ला
कन्‍न विच्‍च मुंदरां सिर ते शमला गल विच्‍च कैंठा पा (2)
बड़ी फबदी ए, सोहणी लगदी ए (2)
वे जेहड़ी जैकट पाई आ ओ जिंदुआ,
वे दस दस कित्‍थों सवाई आ, ओ जिंदुआ
वे दस किन्‍ने दी आई आ, ओ जिंदुआ।

जिंदुआ ते रस बिंदुआ...

यहां सुनें जिंदुआ



बुधवार, 4 सितंबर 2013

प्रेम का हर क्षण अनंत आशीष है...

कीट्स... प्रेम और सौंदर्य का महान गायक, जो जीता रहा 'ब्राइट स्टार' के व्रेम की बेहोशी लिए। जो जूझता रहा ताउम्र क्षयरोग की विभीषिका से। पच्चीस साल की छोटी उम्र में दुनिया को प्रेम के महानतम गीत देकर हमेशा के लिए अलविदा कह जाने वाला कीट्स अफीम का बुरी तरह आदी था। सेंट एंड्रयूज यूनिवर्सिटी के प्रोफे्रसर निकोलस रो द्वारा लिखी गई कीट्स की जीवनी इस तथ्य को उजागर करने के कारण विवादों, आलाचनाओं औरचर्चाओं में घिरी है। ये राइटअप प्रो. निमकोलस रो की पुस्तक 'जॉन कीट्स-ए न्यू लाइफ' से प्रेरित...

प्रेम का हर क्षण अनंत आशीष है
कीट्स के छोटे से जीवन में दो सुंदर नाम जुड़े। जिनमें सबसे पहले जिक्र आता है- इजाबेल जोन्स का, जो उन्हें उस समय मिली, जब वे होस्टिंग्स के पास स्थित बो पीप नामक एक गांव में छुट्टियां बिताने के लिए गए थे। इजाबेल के विषय में कीट्स ने अपने भाई जॉर्ज को लिखा था कि 'वह समाज के उच्चवर्ग की तो नहीं कही जा सकती, फिर भी वह सुंदर और बुद्धिमान है और उसे समकालीन साहित्य की काफी जानकारी है...उन्होंने 'ओ स्वीट इजाबेल' तथा 'द ईव ऑफ सेंट मार्क' जैसी कविताएं इजाबेल के लिए लिखी थीं।

कीट्स की दूसरी प्रेमिका थी- फैनी ब्राउन, फैनी से उनकी मुलाकात सितंबर तथा नवंबर, 1818 के दौरान हुई, जो बाद में परस्पर प्रेम में परिवर्तत हो गई है। पैनी कीट्स से साहित्यिक पुस्तकें पढऩे के लिए ले जाया करती थी, जैसे-जैसे यह संबंध गहरा होता गया, वैसे वैसे कीट्स अनपी पहली प्रेमिका इजाबेल से दूर होते चले गए। अब उन दोनों ने एक साथ बैठकर काव्य संग्रह पढऩा शुरू कर दिया था। यह निकटता सगाई तक भी पहुंच गई, लेकिन फिर कीट्स के तपेदिक का शिकार हो जाने के कारण सगाई शादी में परिवर्तित नहीं हो सकी। कीट्स घोर अंधेरे तथा निराशा में डूब गए। उन्होंने फैनी को लिखे एक पत्र में अपने मन की भावनाओं को कुछ इस तरह अभिव्यक्त किया था- 'अब मेरे जीवन में चिंतन के लिए केवल दो ही बातें रह गई हैं- एक तो तुम्हारा प्रेम, जो सदैव अमर रहेगा और दूसरी मेरी मौत।'
13 अक्तूबर, 1819 को उन्होंने लिखा- 'मेरे प्रेम ने मुझे स्वार्थी बना दिया है। फैनी, तुम्हारे बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। मैं सब कुछ भूल सकता हूं, लेकिन तुमसे बार-बार मिलना कभी नहीं भूल सकता... मुझे अपने जीवन में तुम्हारे सिवाय और कुछ नज़र नहीं आता। तुमने मुझे पूरी तरह अपने अंदर समेट लिया है... मुझे इस क्षण यह अनुभूति हो रही है मानो मैं धीरे-धीरे हवा में विलीन होता जा रहा हूं- अगर मेरी इस आशा ने दम तोड़ दिया कि शीघ्र ही मैं तुमसे मिलूंगा तो शायद मेरा जिंदा रहना भी नामुमकिन हो जाएगा। ... मुझे यह सोच कर हैरानी होती है कि कोई मनुष्य अपने धर्म के लिए शहीद हो सकता है... मेरा धर्म तो केवल प्यार है, जिसके लिए मैं अपनी जान भी न्योछावर कर सकता हूं... मैं तुम्हारे लिए मर भी सकता हूं।'

इस धरती का गीत अमर है

कीट्स एक जन्मजात कवि थे। अपने स्कूल के दिनों से ही वे तुकबंदी करने लगे थे और केवल 15 साल की उम्र में उन्होंने लैटिन के महाकवि वर्गिल के महाकाव्य वर्गिल के महाकाव्य का अनुवाद कर डाला था। उन्होंने 1814 में सुप्रसिद्ध सॉनेट 'इमिटेशन ऑफ स्पेंसर' लिखी, जबकि उनकी 'ओड टु ऑटम' 1819 में लिखी गई थी। उनके अधिकतर गीत इस पांच साल की अवधि के दौरान ही लिखे गए थे। एक बार मित्र हण्ट की चुनौती स्वीकार करते हुए कीट्स ने 15 मिनट से कम समय में ही एक सॉनेट लिख डाली थी।
रो का यह विवादास्पद कथन कि कीट्स अपनी कविताएं लिखने के लिए अफीम का सहारा लेते थे, केवल इस एक तथ्य पर आधारित है कि अक्सर अफीम से बने एक मिश्रण लौडैनम का सहारा
लेते थे। उस समय यह मिश्रण मेडिकल साइंस में एक कारगर 'पेन किलरÓ के रूप में जाना जाता था। रो का कहना है कि 'ओड टु मीलेंचली' तथा 'ओड टु मेलोडी' अफीम की तुनक में लिखी गई कविताएं है। यह कीट्स की काव्य-क्षमता पर शक करने जैसा है।
कीट्स डॉक्टरों की सलाह पर पहले इटली और फिर रोम चले गए। इटली जाने के बाद उन्होंने फैनी को कोई पत्र नहीं लिखा। शायद उन्होंने यह दर्दनाक हकीकत स्वीकार ली थी कि अब वे फैनी से कभी नहीं मिल पाएंगे। वे अपने आपको उसके दिल से बाहर निकालना चाहते थे ताकि फैनी जिंदा रह सके।
(जितेंद्र कुमार मित्तल के सौजन्य से)

Prof Nicholas Roe


मंगलवार, 23 जुलाई 2013

कवि जहां से देखता है, दरअसल, वह वहीं रहता है

आपके टिकने की जगह या 'पोजीशन' का सवाल, लेखन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। फ़र्ज़ कीजिए, हम पांच कवियों को एक गुलाब या एक लाश देते हैं और उस पर लिखने के लिए कहते हैं। जिस 'पोजीशन' से वे उस पर लिखेंगे, वही 'पोजीशन' उन्हें एक-दूसरे से अलग करेगी। कुछ लोग इसे 'एक लेखक द्वारा अपनी आवाज़ पा लेना' कहते हैं। अपनी पोजीशन पाने में बहुत समय लगता है और मेरा मानना है कि लेखन में यही बुनियादी चुनौती भी है। एक बार आपने अपनी पोजीशन पा ली, लेखन अपने आप खुलने लगता है, हालांकि उस समय नई चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं। मेरी कविताओं के मामले में बेचैनी यही थी कि इस दहलीज़ वाली पोजीशन से अरबी भाषा में कविता कैसे लिखी जाए।
आज मैं इस पूरी यात्रा का वर्णन कर पा रही हूं, लेकिन उस समय तो मैं उस बेचैनी को साधारण तौर पर निराशा ही मान लेती थी।
-ईमान मर्सल

यहां प्रस्‍तु‍त हैं ईमान की दो कविताएं

महीन रेखा

अधेड़ उम्र की एक औरत पागलों की तरह अपने प्रेमी की क़मीज़ें फाड़ती है
वह उन पर अपने आंसुओं को ख़ारिज करती है कैंचियों के ज़रिए, फिर नाख़ूनों से
फिर नाख़ूनों और दांतों के ज़रिए
मेरी कुंआरी बुआ ऐसे दृश्य पर रोया करती थी पिछली सदी में, जबकि मैं
ऊबकर उसके ख़त्म हो जाने का इंतज़ार करती थी,
मुझे रुला देते हैं अब ऐसे दृश्य.
कैंचियों, नाख़ूनों और दांतों से एक स्त्री
एक अनुपस्थित देह का पीछा करती है
उसे चबाकर, उसे निगलकर.
कुछ भी नहीं बदला है. नायिकाएं हमेशा दुख पाती हैं परदे पर,
लेकिन उत्तरी अमेरिका में आर्द्रता का स्तर हमेशा कम रहता है
सो, आंसू बहुत जल्दी सूख जाते हैं.
* * *

तुमने हवास खो दिए

मैं अपने बाल पीछे बांध लेती हूं
उस लड़की जैसा दिखने की कोशिश करती हूं
जिसे एक समय तुम बहुत लाड़ करते थे.
बरसों, घर लौटने से पहले
मैं बीयर से धोती थी अपना मुंह.
तुम्हारी मौजूदगी में मैंने कभी ख़ुदा का जि़क्र तक न किया.
ऐसा कुछ नहीं तो तुम्हारी माफ़ी के क़ाबिल हो.
तुम बहुत दयालु हो, लेकिन निश्चित ही उस समय तुमने अपने हवास खो दिए होंगे
जब तुमने मुझे यह यक़ीन दिला दिया था
कि ये दुनिया एक गर्ल्‍स स्कूल की तरह है
और टीचर की लाडली बनी रहने के लिए
मुझे अपनी इच्छाओं को एक किनारे रखना होगा.
अनुवाद: गीत चतुर्वेदी


ईमान मर्सल
30 नवंबर 1966 को जन्मी ईमान मर्सल अरबी की सर्वश्रेष्ठ युवा कवियों में से एक मानी जाती हैं। अरबी में उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और चुनी हुई कविताओं का एक संग्रह, ख़ालेद मत्तावा के अनुवाद में, 'दीज़ आर नॉट ऑरेंजेस, माय लव' शीर्षक से 2008 में शीप मेडो प्रेस से अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुआ। अरबी साहित्य में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद ईमान ने बरसों काहिरा में साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रिकाओं का संपादन किया। 1998 में वह अमेरिका चली गईं और फिर कनाडा। अंग्रेज़ी के अलावा फ्रेंच, जर्मन, इतालवी, हिब्रू, स्पैनिश और डच में उनकी कविताओं का अनुवाद हो चुका है। उन्होंने दुनिया-भर में साहित्यिक समारोहों में शिरकत की है और कविता-पाठ किया है। वह एडमॉन्टन, कनाडा में रहती हैं और अलबर्टा यूनिवर्सिटी में अरबी साहित्य पढ़ाती हैं।


रविवार, 26 मई 2013

प्रेम में कृष्‍ण, कृष्‍ण में प्रेम…


पेंटिंग : दीपाली देशपांडे

कृष्ण उस प्यार की समग्र परिभाषा है जिसमें मोह भी शामिल है, नेह भी शामिल है, स्नेह भी शामिल है और देह भी शामिल है। .कृष्ण का अर्थ है कर्षण यानी खींचना, यानी आकर्षण और मोह। सम्मोहन का मोहन भी तो कृष्ण है। वह प्रवृति से प्यार करता है। वह प्राकृत से प्यार करता है। गाय से, पहाड़ से,  मोर से, नदियों के छोर से प्यार करता है। वह भौतिक चीज़ों से प्यार नहीं करता।  वह जननी (देवकी ) को छो ड़ता है, ज़मीन छोड़ता है। ज़रूरत छोड़ता है, जागीर छोड़ता है , जिंदगी छोड़ता है, पर भावना के पटल पर अटलता देखें, वह मां यशोदा को नहीं छोड़ता। देवकी को विपत्ति में नहीं छोड़ता, सुदामा को गरीबी में नहीं छोड़ता, युद्ध में अर्जुन को नहीं छोड़ता। वह शर्तों के परे सत्य के साथ खड़ा हो जाता है टूटे रथ का पहिया उठाए आख़िरी और पहले हथियार की तरह।
उसके प्यार में मोह है, स्नेह है, संकल्प है,  साधना है,  आराधना है,  उपासना है पर वासना नहीं है। वह अपनी प्रेमिका को आराध्य मानता है इसी लिए "राध्य" (अपभ्रंश में हम राधा कहते हैं ) कहकर पुकारता है। उसके प्यार में सत्य है सत्यभामा का, उसके प्यार में संगीत है, उसके प्यार में प्रीति है। उसके प्यार में देह दहलीज पर टिकी हुई वासना नहीं है। 


पेंटिंग : दीपाली देशपांडे
( Dipali Deshpande is a self-taught Indian artist. She studied Engineering but painting is always been her passion. She worked in corporate sector for few years but her real joy was hiding in colors.)

शनिवार, 25 मई 2013

प्रेम और प्रेम

पेंटिंग - हेस्साम अब्रिशामी
(Hessam Abrishami is an Iranian artist who lives in California, United States. Hessam’s works are greatly influenced by his dramatic life experiences and the warm acceptance he has received from the world at large.)

प्रेम किसी एक व्यक्ति से हमारे संबंधों का नाम नहीं है यह दृष्टिकोण है, एक चारित्रिक रुझान है। जो किसी व्यक्ति के साथ-साथ पूरी दुनिया से हमारे संबंधों को अभिव्यक्त करता है। वह केवल एक लक्ष्य और उसके साथ के संबंधों का नाम नहीं है। अगर एक व्यक्ति केवल दूसरे एक व्यक्ति से प्रेम करता है और अन्य सभी व्यक्तियों में उसकी रुचि नहीं है, तो उसका प्रेम, प्रेम न होकर उसके अहं का विस्तार मात्र है। फिर भी ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि प्रेम एक 'लक्ष्य'  है न कि एक 'क्षमता'
वे समझते हैं कि भूल भी करते हैं कि यदि वे केवल अपने 'प्रेमी' या 'प्रेमिका' से ही प्रेम करते हैं, तो यह उनके प्रेम की गहराई का प्रतीक है। इसका मतलब है कि वे प्रेम को एक गतिविधि के रूप में, 'आत्मा की एक शक्ति' के रूप में नहीं देखते।
उन्हें लगता है कि एक 'प्रेमी' या 'प्रेमिका' होने का अर्थ है 'प्रेम' को पा लेना। यह बिलकुल वैसी ही बात है, जैसे कोई व्यक्ति चित्रकारी करना चाहता है और समझे कि उसे केवल एक प्रेरक विषय की जरूरत है, जिसके मिल जाने पर वह स्वत: ही बढ़िया चित्रकारी कर लेगा। अगर मैं किसी एक व्यक्ति से सचमुच प्रेम करता हूँ तो मैं सभी व्यक्तियों से प्रेम करता हूँ। किसी से 'मैं तुम्हें प्यार करने का सच्चा अर्थ' यह है कि 'मैं उसके माध्यम से पूरी दुनिया और पूरी जिंदगी से प्यार करता हूं।  |एरिक फ्रॉम|

एरकि फॉम
Erich Seligmann Fromm (March 23, 1900 – March 18, 1980) was a German social psychologistpsychoanalystsociologisthumanistic philosopher, and democratic socialist. He was associated with what became known as the Frankfurt School of critical theory.