जीवन में कोई एक घटना किसी की जीवनधारा को कैसे बदल देती है, सूफियों के जीवन से इस बात को सही से समझा जा सकता है। लगभग हर सूफी के जीवन में ऐसी घटना का जिक्र आता है, जिसके बाद उसका जीवन पूरी तरह से बदल जाता है। ऐसी ही एक घटना सूफी हकीम सनाई के जीवन में भी है।
हकीम सनाई के जीवन के बारे में जयादा जानकारी नहीं मिलती। उनका यह फानी दुनिया छोड़ने का सन् 1150 बताया जाता है। वे गजाना के रहने वाले थे। उस समय गजाना पर बादशाह इब्राहिम का राज था।
एक छोटी सी घटना ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। बताया जाता है, हकीम सनाई अपने समय के मशहूर शायर थे। उन्होंने बादशाह इब्राहिम की तारीफ में कविता लिखी और उसे सुनाने के लिए भी चल पड़े। बादशाह उस समय हिंदुस्तान पर हमला करने की जुगत में था। हिंदुस्तान की तरफ जाते हुए रास्ते में एक खुशबूदार हदीका (बगीचा) था, जहां से किसी के गाने की आवाज आ रही थी। यह आवाज लाई-खुर की थी। वह शराबी था और लोग उसे पागल समझते थे। वो गा रहा था- 'शराब लाओ और पिओ, एक जाम अंधे सुलतान के नाम'। लोगों ने कहा- यह क्या कह रहे हो? वह खिलखिलाकर हंसा और बोला- 'अंधा नहीं तो और क्या है? जिस समय उसकी जरूरत अपने वतन में है, उस समय वे दूसरे मुल्कों पर हमला करने के लिए पागल हो रहा है।' अपनी बात पूरी करके वो मस्त होकर फिर गाने लगा- 'दूसरा जाम हकीम सनाई के अंधेपन के नाम...'
हकीम सनाई उस समय बड़े शायर का रुतबा हासिल कर चुके थे। लोगों ने ऐतराज जताया तो लाई-खुर बोला- 'यह तो और भी सही बात है। हकीम सनाई को इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं कि वो किस काम के लिए पैदा हुआ है। जब खुदा के सामने पेशी होगी, तो दिखाने के लिए उसके पास कुछ नहीं होगा, सिवाए सुलतान की प्रशंसा में लिखे झूठे गीतों के।'
यह बात जब हकीम सनाई को पता चली, तो वह हिल गए। पहली बार वे जीवन की हकीकत के रूबरू हुए। तभी वे सबकुछ छोड़कर सूफी मुर्शिद यूसफ़ हमदानी की शरण में गए। कई साल उनके साथ रहने के बाद वे मक्का गए और लौटने के बाद 'हदीकत' की रचना करने लगे। सन 1130 में यह रचना मुकम्मल हुई- जिसका नाम था- हदीकत-उल-हकीकत। इसके बारे में उन्होंने स्वयं लिखा है- जब तक इंसान के पास जबान है, यह पढ़ी जाती रहेगी। फारसी (पर्शियन) में लिखे गए इस ग्रंथ में 12 हजार दोहे हैं। यह एक गैर-साधारण रचना है। इसे समझने के लिए इसमें डूबना पड़ता है। इस रचना ने हकीम सनाई को सूफी गुरु जलालुद्दीन रूमी और अत्तार की कतार में खड़ा कर दिया।
अंग्रेजी में इसके कुछ हिस्से का अनुवाद डीएल पैंडलबरी ने 'द वर्ल्ड ऑफ ट्रुथ' नाम से किया है। इस संपूर्ण ग्रंथ का अनुवाद मेजर स्टीफन सन ने किया था।
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